Dikhava

'दिखावा' एक लघु कहानी ब्लॉग है। यह एक प्रयास है समाज को आइना दिखाने का। ' दिखावा ' मुख्या उदेशय लोगो को अंतकरण मै झाकने के लिए प्रेरित करना है

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Tuesday 24 October 2023

उसकी भी तो कुछ ख्वाइश होंगी

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वो जो जी जान लुटाता है मुझपर
वो जो जी भर के हसाता है मुझको
बहुत दिल चाहता है के मैं भी उस से पूछूं
के तुम्हारी भी तो कुछ ख्वाइश होंगी

कुछ नही कहता, ना अफसोस जताता है 
पर दिन भर का थका हारा मुझे आकर गले जरूर लगाता है
मैं कुछ न कर पाने के हजार बहाने उसे बताती हूं
मगर वो चुपचाप सब कुछ मेरे लिए करता ही जाता है

सोचती हूं के कुछ नया कपड़े लू उसके लिए
या कुछ अच्छा खाना बना दू उसको मैं
पर क्या इतना सा कुछ करने से ही 
मैं उसके बराबर खड़ी हो जाती हू प्यार में

कुछ नही समझ आता, बस दिल चाहता है
के दिन रात दुआ मांगू उसके लिए के 
हर खुशी उसे मिले  मुस्कराहट उसकी कभी ना छूटे
बस इतनी ही दुआ है अब मेरी के मेरी ये दुआ कबूल हो जाए

तो करो ना किस ने रोका है तुमको

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सोचा के आज रात एक कविता लिखूंगी
मगर इनको ऑफिस से आते आते देर हो गईबार घर आए तो खाना लगाया और किचन के बर्तन धोते धोते मैं थक के सो गई
सोचा के आज अच्छे से तैयार होकर बाहर घूमने जाऊंगी
मगर बचो ने आज बहुत तंग किया और इतना थका दिया के बाहर जाने का दिल ही नहीं हुआ तो तैयार क्या होती

सोचा के आज घर का सब काम जल्दी कर के दोपहर को बच्चो के स्कूल से आने ए पहले कोई अच्छी फिल्म देखूंगी
मगर अचानक से घर पे कोई आ गया और फिर कुछ जान पहचान के लोगो के फोन कॉल खतम करते ही डोरबेल बाजी और बच्चे घर आ गए

सोचा के इस बार कुछ पैसे बचाकर एक नया फोन ले लूंगी मगर अचानक से बच्चो के नए स्कूल बैग की डिमांड आ गई
सोचा के अब से हर महीने कुछ पैसे बचायुंगी और साल भर के भीतर एक छोटी सी हल्की सी सोने की चैन बनवा लूंगी अपने लिए मगर अचानक से किसी की शादी आ गई और बच्चों के कपड़ो और लेनदेन में सारा साल भर का बजट हिलगया

मुझे पता है के ये सब मेरी फरमाइश थी सिर्फ मेरी और मेरे खुद के लिए , और घर के बाकी लोगो की भी बहुत सी फरमाइश रही होंगी पर क्या करू मेरी तो शिकायते भी अजीब है के थोड़ा खुद से खुद के लिए वक्त तो दे दो के कही बाहर घूम लू,कोई ऑनलाइन मूवी देख लू
इस पर एक ही जवाब मिलेगा

तो करो ना,किस ने रोका है तुमको.........

Wednesday 12 December 2018

बोझ bojh

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शायद बहुत खाली था उसका दिल ,
इसीलिए मुझे देखने से कभी दिल भरता ही नही था
हो सर्द राते या गर्म दोपहरें मगर वो सजदे की तरह बस मुझे देखा करता था।
अजीब ख्याल था के वो मीलो दूर था मगर जागता भी मेरे संग ओर सोता भी मेरे ख्यालो मैं था
चाहे पहरों उसके संग  बिता दु मगर वो दूर जाने की घड़ी मैं आंखे भर लेता था
मैं मांगू एक फूल तो वो फूलो के बगीचे ले आता था
एक पल में सो खवाबो के महल मेरे लिए सजाता था
वो कुछ भी कर ले मेरे लिए मगर
उसका दिल कभी भरता ही नही था।
पर अचानक उसका दिल भर गया
इतना भरा जे उसने मुझे एक नजर भी न देखा
वो जो फलक से तारे भी तोड़ लाता मेरे लिए
आज उसे मैं अचानक बोझ से लगने लगी

Sunday 9 December 2018

सो साल जिए मगर हजार दफा मरे इक बरस में

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आज करीब करीब एक बरस होने को हो
उसकी बेवफाई को, और शायद मेरी बददुआ के सिलसिले को भी,
कभी सोचा ही नहीं था के उसे बददुआ भी दूंगी। मगर अब देती हु रोज देती हु और बहुत  सारी देती हु

सब कुछ दिया था उसको, भरोसा ऐतबार प्यार इन्तजार , एक एक पल पे उसे खुद का मालिक बनाया मैंने । एक और प्यार का जी भर के इजहार करता था वो , वही दूसरी जी भर के शक करता था और गालिया भी देता था। उसे तो ये भी पसंद नहीं था के अपनी किसी सहेली से भी बात करू मैं।
मगर उसकी गालियां खाई और फिर भी ऐतबार किया उसका, साथ नहीं छोड़ा।
अब जब वो जा रहा था, बेवफाई के रस्मे खुलकर निभा रहा था । मेरी दर्द भरी आहे उसे सुनाई ही नहीं दी। मगर फिर उसने कुछ सुना। वो सुना जो मैं कह रही थी मगर वो सुन नहीं प् रहा था।

ये मेरा दर्द या उसे रोकने का कोई बयान नहीं था। ये वो आखिरी अमानत थी जो मैं उसे दे रही थी। वो चीज जो अब मुझे नहीं चाहिए थी।

ये थी मेरी किस्मत। मैंने उसे कहा के वो जा रहा है उसने कहा ,"नहीं" । उसने कहा के बस वक़्त नहीं उसके पास। तो मैंने कहा के जाओ, जहा जाना है चले जाओ, लेकिन मुझे नहीं भूल पाओगे तुम, मैं अब हर वक़्त तुम्हारे साथ रहूंगी तुम्हारी बेटियो की किस्मत बनकर। मैं अपनी किस्मत तुम्हारी बेटियो को दे रही हु । उनकी किस्मत जब जब बदकिस्मती दिखाएगी तब तब तुम मुझे याद करना और याद ना भी करो तो भी मैं ही दिखाई दूंगी तुमको।

वो फिर पूछता है के ये बददुआ क्यों दे रही हु उसको। मैंने पूछा के वो क्यों छोड़ कर जा रहा है।
उसने कहा ," मैं जान चूका हु के तुम्हारे साथ रहा तो मेरे घरवाले मुझे जान से मार देंगे।"

वैसे हद हो गई इस बार तो यादव बाबू के झूठ बोलने की, 7 साल से तो बोल रहे थे के स्वाति , मै मर जायूँगा लेकिन तुमको नहीं छोडूंगा, यहाँ तक के मर के भी नहीं छोडूंगा तुमको।

दो चार बार तो मुझसे भी वादे लिए के वादा करो स्वाति, तुम मर चाहे जाओ लेकिन मुझको छोड़ने का जिक्र भी नहीं करना।

और आज वो इंसान मुझे कहता के उसे अब मौत से डर लग रा है तो साथ नहीं रह सकता मेरे, तो रब करे वो एक एक पल में सो मौते मरे मगर फिर भी जिंदगी खत्म न हो उसकी।

उसकी बेटियो उसे वो मंज़र दिखाए के जिनको देखकर वो सो दफा कहे खुद से के काश वो मर गया होता ये देखने से पहले, मगर वो मरे ना।

और इसी तरह वो 100 साल जीये।


किस मोड़ kis mod

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दर्द बेचैनी बददुआ , ये किस मोड़ पर मोहब्बत का सिलसिला हुआ
जिसे अपना बनाने चले , वो क्यों दुश्मनो की भीड़ में शामिल दिखा

सब कुछ तो दिया उसको प्यार, वफ़ा , इंटजार तो बदकिस्मती कहा से आई दरमियां
जाते जाते उसे फिर से झोली भर के दिया मगर वो जो मुझको न मिला


Tuesday 4 December 2018

राजू को ही बददुआ क्यों

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स्वाति कुर्सी टेबल पर बैठी हुयी खुद में कुछ गुम सी थी। स्वाति जिसे जीवन में दो बार तलाक देखा। पहली बार उस पति से जिसे उसके माँ बाप ने चुना। स्वाति को रोहित से कुछ खास प्यार नहीं हुआ कभी भी लेकिन लगाव बहुत हुआ। क्योंकि स्वाति ने पहले ही दिन से एक नापसंद दिखने वाले चेहरे को अपना मान लिया था। उसे लगा के ये ही उसकी दुनिया है। ये घर गृहस्ती उसकी अपनी है और फिर अपनी चीज तो चाहे अछि हो खराब , सुन्दर हो या बदसूरत सबको अछि ही लगती है लेकिन उसका सब सपने टूट गए। उसकी शादी एक नापसंद दिखने वाले चेहरे से ही नहीं बल्कि एक कमअक्ल और बदमिजाज इंसान से हुई थी। स्वाति को बहित दुल्हन हुआ अपने तलाक से, इसलिए नहीं के वो रोहित को प्यार करती थी बल्कि इसलिए के वो इस रिश्ते को प्यार करती थी इस गृहस्ती को प्यार करती थी। अभी इस गम से बाहर निकली ही नहीं थी के राजेश उसकी जिंदगी में आ गया।

राजेश पहले से शादी शुदा दो बेटियो का बाप था। वो आया तो एक दोस्त की तरह लेकिन धीरे धीरे स्वाति के दिल में जगह बना ली उसने। और चोरी छिपे शादी भी कर ली उस से। एक ऐसी शादी जिसका ना कोई गवाह था ना कोई सबूत। पर कस्मे थी, रस्मे थी प्यार था और सब कुछ बेपनाह था
मगर ये शादी का भी वो ही अंजाम हुआ जो पहले हुआ था बस पहले तलाक के पीछे बहुत से लड़ाई झगरे थे और इस दूसरे तलाक के पीछे सिर्फ एक ख़ामोशी।
स्वाति ने टेबल से मुह उठाया और सामने देखा तो आईने में खुद स्वाति की परछांई बैठी थी । परछाई ने स्वाति से कहा के क्यों राजेश को इतनी बददुआ देती हो तुम, ऐसा क्या हुआ , कोई नई बात थोड़ी हुई तुम्हारे साथ, एक तलाक पहले हुई थी अब दूसरी भी हो गई ।जहा एक तलाक को बर्दाश्त किया अब दूसरी बार क्या तकलीफ है तुमको, क्यों दिन रात सोते बैठते, खाते, चलते, हस्ते रोते हुए राजू (राजेश) को बददुआ देती रहती हो।
शांत रहो, कम करो गुस्सा, हो सकता हो के कोई मज़बूरी रही होगी उसकी।
अब स्वाति ने देखा उस परछाई को और वो चुप हो गई।
अब स्वाति कहती है, मेरा पहली शादी में एक भी वादा एक भी कसम नहीं खाई थी रोहित ने मेरे लिए, एक बार भी प्यार का दावा नहीं किया था, मुझसे प्यार की मिन्नतें नहीं की थी, मेरे दरवाजे पर दिन रात भिखारी की तरह प्यार की भीख नहीं मांगी थी, उसने अपने खुद के बेटे को गले से नहीं लगाया ।
लेकिन राजू ने मुझसे अनगिनत वादे किये थे, उसने कहा था के वो मरेगा लेकिन मुझे नहीं छोड़ेगा, वो सब रिश्ते तोड़ देगा लेकिन ये रिश्ता नहीं टूटने देगा। पहली बार मेरे सपने टूटे और दिल टुटा तो राजू ने अपने प्यार से उसे सवारा था तो क्या इसलिए के दूसरी बार उसे वो खुद चकनाचूर कर सके। उसने मेरे दरवाजे पर आकर सालो प्यार की भीख मांगी थी तो क्या इसलिए के जब मेरा दिल उसे प्यार देने के लायक हो तो वो मुझे जलील कर सके।

बेशर्मी besharmi

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उसके हिम्मत की दाद दू या बेशर्मी की, के मेरे प्यार पाने के लिए भीख मांगता था मुझसे,
आज मुझे ही अकड़ के कहता है के देखो ऐसे नहीं रह सकता तुम्हारे साथ