Dikhava

'दिखावा' एक लघु कहानी ब्लॉग है। यह एक प्रयास है समाज को आइना दिखाने का। ' दिखावा ' मुख्या उदेशय लोगो को अंतकरण मै झाकने के लिए प्रेरित करना है

Friday 26 January 2018

जब कर्फ्यू मै था एक शहर सिरसा

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सिरसा शहर मै कर्फ्यू लग गया।क्योंकि एक साधू एक संत की एक बलात्कार के मामले मैं फैसला आनेवाला था और फैसला का रुख उस संत के खिलाफ दिख रहा था।
उन दिनों एक माँ बिस्तर पर पड़ी हुई बीमारी की गंभीर हालात झेलती हुई दो बेटो के साथ उस अनजान शहर मे जी रही थी। अनजान शहर इसलिए क्योंकि उस शहर मई कोई उसे जाननेवाला नहीं था। वो उस शहर मई 7 8 महीने पहले ही अपन दो बेटो के साथ आई थी। दरसअल उसकी बेटी साथ के शहर मैं ब्याही हुई थी ।और उसने ही अपनी माँ और भाइयो को पहले अपने शहर सिरसा मै बुलाया फिर दोनों भाइयो का जैसे तैसे कुछ काम शुरू करवाकर सिरसा शहर मै किराये का घर दिलवाया।
अब दोनों भाई उस शहर मई अपनी माँ के साथ रहते थे।
इस कहानी मै, जो माँ का पात्र है वो वास्तविक जीवन मै मेरी बहुत नजदीकी रिश्तेदार हैं जो अभी पिछले बरस तक उत्तर प्रदेश के एक शहर मई अपने भरे पुरे ससुरालियों और मायके वालो के बीच रहा करती थी। इस बीच उनके पति को दो बार अधरंग का अटैक आ गया, एक बार कोहनी की, एक बार कंधे की हड्डी टूट गई और एक बार कूल्हे की हड्डी की ऑपरेशन , इस तरह धीरे धीरे दोनों बेटो ने अपनी जमा पूंजी और साथ ही पुश्तैनी जायदाद का अपने हिस्से का टुकड़ा बेचकर उनके इलाज पर लगा दिया। और ऊपर एक शादीशुदा बहन को हर त्यौहार पर कुछ न कुछ देने की रस्म के चलते काफी कर्जे मई दुब गया परिवार।
लेकिन आखिर मै होनी बलवान हुई और एक पिता  ने लंबी बीमारी से जूझते हुए दीवाली से 5 दिन पहले , 2016 मे अपने देह त्याग दी।
अब बस बची केवल माँ, लेकिन कहते है क माँ की छाया इस दुनिया की सबसे बड़ा आसरा और ताकात है । अब दोनों बेटे और माँ सिरसा शहर मै रहते है। लेकिन अचानक एक महीने से माँ की तबियत बहुत ख़राब रहने लग गई। अब माँ पिछले 20 दिन से बिस्तर पर है। उन्हें लगातार दवाई डॉक्टर की जरुरत पड़ती रहती है
लेकिन संत समुदाय के जाने माने संत और करोड़ो लोगो की श्रद्धा के प्रतिक , राम रहीम की कोर्ट मे पेशी होनी थी तो 3 दिन पहले ही शहर मे कर्फ्यू लग गया। अब ये बच्चे न तो काम पर जा प् रहे है और न ही माँ के लिए दवाई लेने जा सकते है क्योंकि पूरा शहर दंगो और आग मे झुलस रहा है।
और माँ बिस्तर पर लेती हुई बेजान से शारीर के साथ सोच रही हैके काश किसी तरह वो उठ जाए और अपने बच्चों को दो रोटी बनाकर दे दे।
पर क्या फरक पड़ता है किसी को एक बीमार इंसान के दर्द तकलीफ से। यदि दूसरे नजर से देखे तो इन श्रद्धालुओं और दंगाईयो मै कोई ख़ास फरक भी नहो, दोनों केवल खुद की झूठी आन बाण और जिद्द के लिए शांति प्यार सद्भाव सब खत्म कर रे है
लेकिन काश किसी को जरा सा भी ये कहानी छू जाए तो जान जाए के इंसानियत इस धरती पर सबसे बड़ा धर्म है और जीवन का वास्तविक लक्ष्य भी।



Ruchi Sehgal