रेलवे स्टेशन के खाली प्लेटफार्म पर बैठी, मैं ट्रैन का इन्तजार कर रही थी. लाउड स्पीकर से आने वाली हर आवाज को मेरे कान लगातार सुन रहे थे. मेरी ट्रैन निकल चुकी थी और अगली ट्रैन २ घंटे बाद थी. मैं एक अच्छी लड़की की तरह चुपचाप प्लॅटफॉर पे बैठी हुई थी। आने जाने वाले लोगो की हलचल देख रही थी. कुछ लोग अपने बच्चो को चिप्स के पैकेट खरीद के दे रहे थे. और कुछ बेवजह ही प्लेटफार्म से दूर तक रेलट्रैक को देख रहे थे के शायद कोई और ट्रैन हो जिस से वो जल्दी पहुंच सके अपनी मंजिल को।
प्लेटफार्म पे लगी सीमेंट की बैठने की कुर्सी पर बैठे हर किसी इंसान को इन्तजार था अगली ट्रैन का। इतने मैं एक साधू भी प्लेटफार्म पे आया। उम्र से काफी कम दिखें वाला वो साधू बाबा पूरी फुर्ती के साथ स्टेशन पे इधर से उधर चहलकदमी करने लगा. कपड़ो की बात करू तो बसंती रंग का कुरता और धोती पहने हुआ था वो बाबा। शरीर की लम्बाई भी 6 फुट के आस पास होगी। बालो की लम्बी जटाये सर पे लपेट कर और उसपर भी बसंती रंग की पगड़ी पहन कर वो चहलकदमी करे जा रहा था।
इतने मैं एक शताब्दी ट्रैन आई पर उस ट्रैन पे केवल रिजर्वेशन यानी के वो लोग जो अधिक किराया दे सकते थे वह लोग ही जा सकते थे। कुछ सावरीया ट्रैन से उत्तरी और शायद दो चार लोग उसमें चढ़े और ट्रैन चल पड़ी। दो मिनट मै ही पलटफोर्म फिर से वीरान हो गया।
तभी वो साधू बाबा उठा और एक पुरुष के पास जाकर बोला " कुछ खिला दो बाबा, मुझे भूख लगी है " उस आदमी ने पेण्ट शर्ट पहनी हुई तो अछि हैसियत का मालूम होता था। पर फिर भी उस आदमी उसे गर्दन हिलाकर मना कर दिया।
फिर वह साधू बाबा एक और आदमी के पास गया और वही बात बोली, पर उसे इस बार भी इस तरह मना कर दिया गया इसके बाद एक बार और ये ही हुआ और इस बार उस साधू बाबा के सहनशक्ति जवाब दे गयी। और उसने अपने सर से पगड़ी उठा कर प्लेटफार्म पे फेक दी और गाली देकर चिल्लाते हुए बोला " क्या तुम्हे केवल वो ही लोग साधू सन्यासी नजर आटे है जो भगवा कपडे पहन कर ए सी गाड़ीमे इधर उधर घूमते रहते है, और तुम लोग भी उनके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते हो और नोटों की गद्दी लेकर भी। उन लोगो के तुम पेअर छूने को भी तैयार रहते हो लेकिन मैं क्या साधू नहीं। ये जटाये क्या मैंने यु ही शोक मैं बड़ा ली। "
इतना कहकर उस साधू बाबा ने अपनी कमर से निचे गिरती जटाये फिर से लपेटी और जमीन से गिरी हुई भगवा पगड़ी उठाई और दुबारा सर पर लपेट ली और प्लेटफार्म के कोने से तेजी से आगे चला गया
परन्तु उसकी बाते अभी भी मेरे मैं को भीतर तक कचोटती है के आज के जीवन मैं लोग ए सी कमरे मैं रहने वाले, सोने चांदी के बर्तन मई खाने वाले और अचे संस्कारो का भाषण देने वाले को ही साधू क्यों मानते है कुछ लोग तर्क डेट है ये सड़क पे घूमें वाले साधू पीसो का उपयोग नशे का सेवन के लिट्ये करते है परन्तु इस बात का क्या प्रमाण के 5 स्टार साधू जो लम्बी लम्बी गाड़ियों ै घुटे है के वो यह सब प्रकार के विकारो से दूर है ?
इतने मैं ही मेरी ट्रैन आ गयी और मैं भी बाकी सभी लोगो की तरह ट्रैन मैं बैठ निकल पड़ी मंजिल की और।
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