अपने 6 साल के बेटे को आगे पीछे शरारते करते जब अक्सर अपना बचपन बहुत याद आता है बड़ा सा आंगन और बहुत से पेड़ , आम के, जामुन के और अमरुद के , और भी जाने कितने तरह पेड़ थे। मैं कसर जमीन पे उगने वाले पढ़िए के पत्ते तुलसी के पत्ते तोड़ के खाया करती थी
मुझे याद है के हम जिस घर एक एक दुरी पे थे और बहुत बड़े भी। हमारे घर के पीछे भी छोटे छोटे कमरे मई लगभग 6 या उस से ज्यादा परिवार रहते थे। तक़रीबन सभी परिवार बिहार के पिछड़े इलाको से थे और रहन सहन बहुत ख़राब था। उनके बचो के कपडे अक्सर मैले और कई बार बदबूदार भी होते थे। पर मैं बहुत खुश रहती थी उन बचो के साथ। स्कूल से आते ही उन बचो के साथ घर घर खेलना मेरा खेल था। हलाकि ज्यादातर खेल वो बचे सड़क के किनारे खेलते थे जिस से मेरी माँ को था। क्युकी ये उनके मुताबिक अचे बच्चो का काम नहीं। शायद वो सही भी हो उस वक्त अपनी सोच मैं क्युकी हमारे आंगन मैं इतनी जगह थी के आराम से खेला जा सकता था और ऐसे मैं मेरी माँ को मेरा घर से दूर सड़क के बीच ख़राब हालात बचो के साथ खेलना उन्हें निश्चित ही परेशान भी करता होगा। मुझे आज भी याद है उन बचो के नाम , दीपमाला , शोभा, नैना, आरती , राजू, मुनिया ,मीशा, मनसा, मनभावती और चुहिया।
बिहार के गांव से होने के कारन उन लोगो को खेती बाड़ी की बेहतर अछि समझ भी थी इसीलिए मैं अक्सर आंगन मैं पेड़ पौधे लगाती थी कभी टमाटर , कभी भिंडी तो कभी घीया ,टोरी , मक्की ,पुदीना और पपीता। हलाकि ये ज्यादातर पेड़ मौसम के करवट बदलते ही खराब होकर सूख जाते थे
मुझे याद है के मेरी माँ ने मुझे एक अनार का पौधा लाकर दिया था जिसे अपने स्टोर रूम के पीछे मैंने रोप दिया था और रोज उसे खूब प्यार से मैं पानी देती थी उसके लिए खाद का इंतजाम करना और कीट नाशक छिड़कना ये सब जरुरी काम थे
समय के उस पेड़ की लम्बाई बड़ी और वो पेड़ मेरे कमर से भी ऊँचा हो गया और एक साल मैं वो पेड़ मेरे सर से भी ऊँचा हो गया
और 2 साल बाद उस पर फूल उगने लगे और मैं अभी भी दीपमाला और चुहिया के साथ उस पेड़ के निचे स्टापू खेला करती थी पहले साल 4 अनार लगे और अगले बरस शयद 20 अनार लगे फिर एक दिन उस घर को मेरे माँ पापा ने किसी को बेच दिया और हमें 6 महीने मैं वो घर खाली करना था मई सोचती रही के कैसे उस पेड़ को साथ सकू और धीरे धीरे सभी किरायेदारों ने वो घर छोड़ दिया वो पेड़ वीरान सा बना वही खड़ा रहा। अब मई भी उस पेड़ के पास नहीं जाती थी क्युकी दीपमाला , शोभा, चुहिया कोई भी तो नहीं था मेरे साथ। तो किसके साथ खेलती स्टापू और अकेले तो उस के फल गिनने का भी दिल नहीं करता था। ऐसा लगता था के वो पेड़ चूका था के अब उसे अकेले ही रहन होगा इसीलिए उसके पत्ते न तो अब हिलते थे न हवा करते थे ऐसा लगता था के वो पेड़ समय से पहले ही बूढ़ा हो चूका था।
धीरे धीरे हमारे नए घर मैं तैयारियां तेज हो गई सब लोग नए घर की साज सजावट और सफाई मैं व्यस्त हो गए और आखिर वो दिन आ ही गया जब हमें वो घर छोर कर जाना था। एक एक करके सब समान नए घर मैं ट्रक ट्रक से पहुंचाया जाएं लगा और सबसे आखिर मई सब पेड़ पोधो को गमलो को ट्रक मै रखा गया। पर पेड़ वो पेड़ वही खड़ा रहा और हम उस घर की चाबी किसी और के हवाले कर के नए घर को आ गए।
अब भी सोचती हु वो पेड़ इंसानो की तरह क्यों नहीं था ? क्यू जड़े छोड़ नहीं सकता था ?
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