'दिखावा' एक लघु कहानी ब्लॉग है। यह एक प्रयास है समाज को आइना दिखाने का। ' दिखावा ' मुख्या उदेशय लोगो को अंतकरण मै झाकने के लिए प्रेरित करना है

Tuesday 12 September 2017

प्रदुमन ठाकुर , ryan international school murder case

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प्रदुमन ठाकुर
एक 7  साल का बच्चा, आँखों कैसी ख़ुशी ,चमक, सपने और उड़ान रखता है ये मै बहुत अच्छे  से जानती हु। क्युकी मैं भी एक माँ  हु 6 साल के बच्चे की।  टीवी पर जब ये खबर सुनी के गुड़गांव के रयान इंटरनेशनल स्कूल मैं एक 7  साल के बच्चे का मर्डर हो गया उस वक्त मै दूसरे कमरे में बैठी आराम कर रही थी। पिछले कुछ दिनों से बुखार की वजह से बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी तो अपने कमरे मै लेटी मैं आराम कर रही थी।  टाइम दोपहर के 12 बजे होंगे। पापा ने न्यूज़ चैनल लगाया और ये खबर आने लगी।
मैंने अचानक से डरने लगी। मेरा बेटा स्कूल से आने वाला था।  जैसे ही स्कूल से आया उसे मैंने बहुत प्यार किया और सोचा के ये खबर 2 -4  दिन मैं टीवी से ख़तम हो जाएगी और मेरे दिले दीमाग से भी उतर जायेगी। जैसे बाकी की सब खबरे न्यूज़ चैनेलो से आकर धीरे धीरे गायब हो जाती है।
पर ऐसा हुआ नहीं ,बार बार टीवी पर उस बच्चे  की तस्वीरें देखती हु और सोचती हु के गर इंसान को रहम नहीं आया तो कुदरत को भी रहम नहीं आया उस मासूम चेहरे पर।
एक माँ कितनी राते जागती रही , कितने ख्वाब रही के ये बच्चा होकर कैसा लगेगा। उसके लिए दिन रात दुवाये मांगती रही होगी।  उसे जब जब भी जरा सा चोट लगी होगी तो माँ 10 बार आह  भरी होगी।  जरा से बुखार खांसी पे उसे गोद से नीचे नहीं उतरने देती होगी और आज उसका बच्चा कौन से लथपथ जमीन पर गिरा पड़ा था बेजान सा शरीर से जान बस निकलने वाली थी। बच्चे को कुछ महसूस नहीं हो रहा था बस कुछ शोर की आवाजे  और फिर कोई आया उसे गोद में उठाया और भागने लगा। आनन् फानन मै उसे कार मई लेकर हॉस्पिटल की तरफ भागे उस बेजान सी नन्ही सी जान के साथ। लेकिन बेरहम किस्मत को एक माँ की गोद सुनी कर के ही चैन आया। हॉस्पिटल मैं डॉक्टरों ने प्रद्युमन को मृत घोषित कर दिया और एक माँ की सभी दुवाओ को बेअसर और बेकार साबित कर दिया।
आज 4 दिन बीत गए लेकिन मैं अभी भी डर से बाहर नहीं ला पायी खुद को।  रोज रात को अपने बच्चे को जोर से सीने से लगाकर सोती हु दिन भर उसे लाड लगाती हु।  डर के मारे उसे दांत भी नहीं पाती।  मैंने कभी नई देखा उस बच्चे को लेकिन दिन रात बस दुवा करती हु फिर भी।  जानती हु के ये सब दुवाये बेकार है अब लेकिन मैं दवा करती हु के उस माँ को हौंसला मिले खुद को संभालने का।  उस बाप को हिम्मत रहे अपने बच्चे के कातिलों से लड़ने की।  आमीन 

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