'दिखावा' एक लघु कहानी ब्लॉग है। यह एक प्रयास है समाज को आइना दिखाने का। ' दिखावा ' मुख्या उदेशय लोगो को अंतकरण मै झाकने के लिए प्रेरित करना है

Monday 3 December 2018

जायज बददुआ

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स्वाति रिक्शा के पीछे बैठी भीड़ भाड़ वाले बाज़ारो से निकल रही थी। बाजारों में यु तो वैसी ही रौनक और शोर गुल था जैसा की हर बार दीवाली पे होती है। मगर ये सब कुछ स्वाति को अच्छा नहीं लग रहा था । वो जाने किन सोचो में गुम थी।
सात साल पहले
स्वाति बहुत उदास और परेशान थी। उसकी शादी को दो साल भी नहीं हुए थे के हालात तालाक तक पहुँच गए थे। कोर्ट में केस चल पड़ा था। दोनों पार्टीज जानती थी के होगा कुछ नहीं आखिर में तलाक ही होगी बस लेकिन  सब कोर्ट   कचहरी के रिवायती दस्तूर थे तो आगे बढ़ रहे थे।
इस परेशानी में स्वाति को कुछ समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, किस से बात करे, कोई भी उसे अपना लग नहीं रहा था और सहेलियों की तो पहले ही शादी हो गई थी । स्वाति बहित अकेली हो गई थी ।वो भूल जाना चाहती थी के उसकी कभी शादी भी हुई थी।
यु ही एक दिन उसकी मुलाकात राजेश से हुई। राजेश यु पी जल बोर्ड, मेरठ मे सरकारी नोकरी करता था।
बातो बातो में बात होने लगी। दरसअल राजेश कानूनी मसलो में काफी अछि जानकारी रखता था। तो कई बार स्वाति उस से सलाह लेने क लिए उस से बात कर लेती थी।
इसी बीच राजेश ने उसे बताया के वो शादीशुदा है और दो बेटियो का बाप भी है।
स्वाति को  इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो इसे महज दोस्त की नजर से देखती थी और वैसे भी स्वाति भी अभी कुछ महीने पहले एक बेटे की माँ बन चुकी थी ।
राजेश ने उसे बताया के उसके और उसकी पत्नी अपर्णा के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे ।वो केवल अपनी पत्नी और बच्चों की जिमेदारी निभा रहा है वर्ना उसके घरवालो को न तो राजेश की कोई जरुरत थी और न ही कोई प्यार।
स्वाति को उसकी बातो से बहुत सहानुभूति होने लगी लेकिन इस सहानुभूति का मतलब राजेश ने प्यार समझ लिया खुद से ही।
एक दिन राजेश ने स्वाति को प्रोपोज़ कर दिया के वो  उस से शादी करना चाहता है।
इस बात से स्वाति राजी नहीं थी उसने कई बार राजेश से बात तक करना छोड़ दिया। उसे साफ़ साफ़ मना किया। मगर राजेश का मन उसके काबू में नहीं था । वो रोज किसी नये नंबर से फ़ोन करता स्वाति को, उसे sms करता, ईमेल करता, के किसी तरह स्वाति की आवाज सुन पाये।
रोज हजारो वादे करता, कस्मे खाता के वो स्वाति से केवल नाम की शादी नहीं करेगा बल्कि स्वाति को  उसका हक़ भी दिलवाएगा।
आखिर स्वाति का दिल पिघला और उसने राजेश से चोरी छिपे वृन्दावन के एक मंदिर में शादी कर ली।
इसके बाद दोनों होटल में मिलते और दो दिन दिन पति पत्नी की तरह साथ रहते और फिर अपने अपने शहर निकल जाते। हालांकि इस बीच राजेश का वादों और कसमो का सिलसिला जारी रहा। वो हजारो मर्तबा तो अपनी बेटियो की कसम खा चूका था के कुछ भी होगा लेकिन स्वाति का साथ नहीं छोड़ेगा।

अब 5 साल हो गए । स्वाति खुद के रिश्ते को दुनिया के सामने लाना चाहती थी लेकिन राजेश अभी भी अपनी परेशानियो में उलझ हुआ था। हां गर स्वाति कभी उसे भूले से भी बोल दे के वो इस गुमनाम रिश्ते में नहीं रहना चाहती तो फिर एक नयी कसम खाकर उसे कुछ दिन इन्तजार करने को बोल देता था।
एक बार स्वाति ने राजेश को बोला के उन्हें अलग हो जाना चाहिए तो राजेश ने स्वाति से कसम उठाने को बोला के वादा करो स्वाति, तुम मर जाओगी लेकिन मुझसे दूर नहीं जाओगी।
ये सब चल रहा था के अचानक खबर आई के राजेश की छोटी बेटी को कैंसर है। तो राजेश ने स्वाति से फिर से एक साल का वक़्त माँगा के इस बीच वो अपनी बेटी का इलाज कराएग और जैसे ही मन्नू यानि राजेश की छोटी बेटी ठीक होगी वो स्वाति को अपने घर यानी स्वाति को उसके ससुराल ले जायेगा और सब से परिचय करायेगा और उसे बीवी होने का हक़ भी दिलाएगा।
स्वाति को अच्छे से याद है ये भी एक वादा था राजेश का।

अब स्वाति दिल से दुआ करती थी के मन्नू ठीक हो जाए । और राजेश की जिंदगी में अब कोई परेशानी न रहे।

1 साल बीत गया, मन्नू ठीक हो गई थी। लेकिन अब राजेश का रवैया बहुत बदल चूका था । वो न तो स्वाति को खुद फ़ोन करता था न उसके फ़ोन पर ज्यादा बात करता था।
यहाँ तक के उस से मिलने को भी मना कर देता था। लेकिन स्वाति को यकीन था अभी भी के राजेश बदल नहीं सकता बस बिजी होगा तो बात नहीं करता।

एक दिन तो स्वाति ने खूब लड़ाई भी करी राजेश से, लेकिन स्वाति ने फिर सोचा के राजेश तो अपनी बेटियो के लिए जान तक देने को तौयार रहता है तो अपनी बेटियो की खायी हजारो कस्मे भूलने या तोड़ने की तो वो सोचेगा भी नहीं।

अब लड़ाई हुए एक महीना हो गया था। राजेश तो स्वाति से बात किये बिना 6 घंटे नहीं गुजार सकता था और अब एक महीने में एक फ़ोन भी नहीं।

स्वाति सोच सोचकर पागल सी हो रही थी। उसे समझ ही ना आ रहा था के क्या हो रहा है।
परेशानी बढ़ि तो शारीर पे असर दिखने लगा । स्वाति को खाना पीना पचना बंद हो गया। उसे एक महीने में दूसरी बार हॉस्पिटल एडमिट होना पड़ा।
अब स्वाति ने रोते रोते राजेश को फ़ोन किया के वो बीमार है कम से कम उसे देखने ही आ जाओ। तो राजेश ने झुँझलाकर जवाब दिया के अभी तो दो महीने टाइम नहीं उसके पास कही भी जाने आने का। तो वो नहीं आ सकता स्वाति से मिलने।उसके बाद स्वाति ने राजेश को कभी फ़ोन नहीं किया।


आज एक साल बीत गया राजेश से उस आखिरी बार फ़ोन पे बात हुए। ऐसा नहीं के स्वाति आज उसे भूल गई लेकिन हां वो अब कभी भी राजेश की आवाज नहीं सुन्ना चाहती ।

इस बीच स्वाति ने बहित बददुआ दी राजेश को और उसकी उन बेटियो को , जिनके सर की झूठी कस्मे राजेश ने खाई।
लेकिन उसने कभी भी बददुआ नहीं करी के मन्नू  को कैंसर हो दुबारा। क्योंकि उसे लगा के ये बददुआ शायद जायज न हो।

मगर आज उसे याद आयाके जब मन्नू को ये बीमारी हुआ तो राजू ने परेशानी में स्वाति को कहा के वो मन्नू को इस बीमारी में नहीं देख प् रहा। मन्नू की जगह , अपर्णा या मुझे या फिर उसकी माँ गर बीमार हो जाती तो वो उनका इलाज करा लेता लेकिन मन्नू को डॉक्टर पास ले जाने के नाम से ही डरता है वो

आज स्वाति को लगा के अब जब स्वाति सच में हॉस्पिटल एडमिट हुई तो राजू उसे देखने आना तो दूर उसका हाल भी नहीं पूछा तो इस हालात में जब वो खुद से अपनी बेटियो की कस्मे तोड़ चूका है, आज स्वाति ने फिर भरे मैं से पहली बार बददुआ करी के राजू की बेटी इस बीमारी से कभी आज़ाद ना हो।
बाकी भगवन जानेगा के सच सही गलत क्या है मगर स्वाति दिन रात के हर पहर अब उस शक्श और उसकी दोनों बेटियो के लिए लंबी उम्र की दुआ करती है के वो खूब जिए मगर तन्हाई में, उसकी बेटियो के चेहरे पर हमेशा मातम का सन्नाटा छाया रहे। राजेश आनेवाले 50 साल तक यु ही अपनी जिन्दा जागती बेटियो को लाश की तरह देखे जैसे वो स्वाति को बना गया। आमीन


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