'दिखावा' एक लघु कहानी ब्लॉग है। यह एक प्रयास है समाज को आइना दिखाने का। ' दिखावा ' मुख्या उदेशय लोगो को अंतकरण मै झाकने के लिए प्रेरित करना है

Tuesday 4 December 2018

मोक्ष अभिलाषी moksh abhilashi

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वो एक मोक्ष अभिलाषी था। उसे इर्द गिर्द अच्छे सच्चे और नेक कर्मो का घेरा था।
उसे बच्चो से प्यार था। उसे पेड़ पोधे हरियाली उगाने का शोक था।
वो मोम दिल था। वो आंसू देख नहीं सकता था। वो अपनी बेटियो को शहजादियों की तरह रखता था।
एक बार उसे गलती से झुंझलाहट में मैंने कुछ कह दिया तो गुस्से में मुझे बोल गया के उसकी बेटियो की ख़ुशी के लिए उसके अच्छे कर्म ही काफी है।
वो तीर्थ दर्शन करना चाहता था। वो गंगा किनारे मेरे संग बैठा रहता था।
वो गली गली मुझे ढूंढता रहता था।
वो जीवन सीमा के बाद भी मेरे संग रहने की उम्मीद करता था। उसे मेरा कोई भी लहजा चाहे  नरम या सख्त कभी बुरा नहीं लगता था।
सच कहु तो मुझे भी वो फरिश्ता सा ही लगता था।
मगर ये सब बातो में अब 'था' आता है क्योंकि वो है लेकिन वो ये सब नहीं है अब
वो गुनाहो की कोठरी में बंद है अब,
उसके सब अच्छे कर्म मेरे पर आकर खाक हो गए।
वो जो मोम बना फिरता था मेरे सामने पत्थर बन गया अब।
वो जो आंसुओ को भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था वो मेरी मिन्नतों को भी नजर अंदाज कर के जा चूका है। उसके सर मुझे जीते जी मारने का इल्जाम आ चूका है।
वो जो मेरे सर पर चादर बनकर ढका करता था दामन मेरा, वो दुनिया भर के महफ़िल में रुसवा कर चूका मुझे।
वो जो गलियो गलियो ढूंडा करता था मुझे , आज अंधे कुवें में धकेल चूका मुझे।

उसे इतना ही कहना चाहती हु के अब उसके अच्छे कर्म खत्म हो गए केवल नीच कर्म ही बाकी है।
और उनका हिसाब दिए बिना दुनिया से उसे जाने नहीं दूंगी मैं।
जो किसी की बेटी को लाश बनाकर भरे बाजार फेक गया , एक दिन खुदा उसकी बेटियो को भी ये अंजाम देगा।
क्योंकि मैंने सुना के खुदा की अदालत में आँख के बदले आँख, और इज्जत के बदले इज्जत देकर हिसाब चुकाया जाता है।

मै खुदा नहीं मगर ये यकीन जरूर है मुझे के मेरी बददुआ उसे अगले 100 जन्मो तक भी मोक्ष नहीं देने देंगी। अब उस मोक्ष अभिलाषी को माफ़ी नहीं मिलेगी

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